Marketing executive | पोस्ट किया |
prity singh | पोस्ट किया
आपने अपने आसपास बहुत से ऐसे लोगों को देखा होगा जो बहुत ही सफाई से झूठ बोलते हैं वे लोग अपने झूठ को इतने यकीन से बोलते हैं कि उसकी बात सच लगने लगती है और और हम सोचने लगते हैं कि वह व्यक्ति इतने यकीन से बोल रहा है तो वाह सच ही बोल रहा होगा लेकिन वैज्ञानिक हमारे इस विचार को सही नहीं मानते हैं वैज्ञानिक इसे सच का भ्रम मानते हैं
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झूठे लोग सच का भ्रम इस तरह से बनाते हैं जैसे कि कुछ लोग झूठ को इतनी सफाई से बोलते हैं कि पता नहीं चलता है कि वो झूठ बोल रहे हैं या सच? क्योंकि झूठ बोलने वाला किसी भी बात को कितनी भी सफाई से कहेगा तो वह सच लगेगी और झूठ बोलने पर कोई भी बात कही जा सकती है चाहे वह वास्तविक हो या गैर वास्तविक। इस प्रकार झूठ बोलने वाले सच का भ्रम पैदा करते हैं और सामने वाले को भ्रमित कर देते हैं।
झूठ बोलने वाले व्यक्ति इतने चालाक होते हैं कि बार-बार उनके बोलने से लोग सच मान लेते हैं क्योंकि ऐसे लोगों की मानसिकता ऐसी होती है किसी भी तरीके से रख सकते हैं कि उनके आगे बुद्धिमान भी फेल जाते हैं। झूठ इस प्रकार से बोला जाता है कि सामने वाले को धोखे में रखा जा सके। कभी-कभी झूठ इसलिए भी बोला जाता है कि किसी का इससे भला होता है। झूठ बोलने का तात्पर्य ये भी होता है कभी-कभी कोई बात सच होती है पर वह वास्तव में सच नहीं होती है इसलिए भी झूठ बोल कर उसे टाल दिया जाता है कि हम किसी भी ऐसी बात पर यकीन ना करें जो वास्तव में सच नहीं है।
झूठ बोलने से कुछ देर के लिए सुकून मिलता है लेकिन उसके बाद उससे वो सुकून छिन जाता है। वो कहते हैं ना कि सच का रास्ता कठिन जरूर होता है लेकिन उसकी मंज़िल साफ होती है पर झूठ का रास्ता चाहे जितना साफ हो उसको मंज़िल पर अंधेरा होता है जहां जाना नामुमकिन होता है।
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