मोदी सरकार सपने तो बहुत दिखाती है.लेकिन सपने पूरे होते हैं या नहीं |यह बहुत बड़ा सवाल मोदी सरकार से हमेशा रहता है|क्योंकि मोदी सरकार का कार्य हमेशा आपको न्यूज़ चैनलों के विज्ञापन और बड़े बड़े पोस्टर में दिखाई देगा| लेकिन जब आप जमीनी स्तर पर उसे देखने जाएंगे तब आप बिल्कुल दंग रह जाएंगे| ठीक उसी तरह गंगा की सफाई को लेकर मोदी द्वारा 2014 में किया गया वादा था| गंगा नदी की सफाई को लेकर कांग्रेस की सरकार ने भी बहुत कोशिशें की थी| लेकिन अभी तक दोनों पार्टियों के सारे वादे पस्त नजर आ रहे हैं. मोदी के आने के बाद लोगों को उम्मीद थी कि आने वाले समय में गंगा का पानी जरूर पीने योग्य हो जाएगा .क्योंकि मोदी ने गंगा की सफाई के लिए 20,000 करोड रुपए खर्च करने का वादा किया था| सरकार ने गंगा कि सफाई को लेकर बड़ी बड़ी परियोजनाएं बनाई थी .लेकिन अब लगता है कि मोदी भी गंगा सफाई की परीक्षा में फेल होते नजर आ रहे हैं|1985 से लेकर 2014 तक गंगा की सफाई में 4000 करोड रुपए का खर्च किया जा चुका है|
बीजेपी की सरकार बनने के बाद 2014-15 में 2,053 करोड़ रुपए आरंभिक राशि के साथ 'नमामि गंगे' नाम की एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना शुरू की गई | जिसमें 326 करोड रुपए केंद्र ने भारी प्रचार प्रसार के लिए खर्च किए थे | नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट ने कहा है कि गंगा का पानी अभी भी पीने योग्य बिल्कुल नहीं हुआ है |गंगा नदी को और ज्यादा प्रदूषित करने का काम रामगंगा कर रही हैं. क्योंकि रामगंगा पूरी तरह से नाले का रूप धारण कर चुकी है जिससे रामगंगा का पानी जब गंगा नदी में पहुंचता है. तब गंगा नदी का पानी भी अपना रंग बदल देती है |एक आरटीआई अर्जी के जवाब से खुलासा हुआ कि सरकार गंगा की सफाई पर अब तक 3,800 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है. तब सवाल उठता हे कि जमीनी स्तर पर सफाई कहां-कहां हुई? इतनी बड़ी रकम कहां-कहां और किन मुदों में खर्च हुई?लेकिन सरकार के पास इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.या यूं कह ले की सरकार इस पूरे मामले में जवाब देने से बचना चाहती है |