शराब में कुछ मिला नहीं होता, बल्कि इसे पीने के बाद शरीर में जो सुखद संवेदनाएं होती हैं, उनके लिए व्यक्ति बार-बार शराब पीना चाहता है। यह सुखद संवेदनाएं मानस में तृष्णा जगाती हैं और उन्हें पुनः पाने के लिए व्यक्ति धीरे-धीरे गुलाम हो जाता है ।
जन्म से ही हमारे मानस का स्वभाव होता है राग और द्वेष मे लिप्त रहने का..। जो भी अच्छा लगता है उसके प्रति राग जगता है फिर चाहे वह व्यक्ति हो.. वस्तु हो.. या परिस्थिति हो। यही हाल नशे की और चीजों जैसे तंबाकू सिगरेट गुटका आदि के साथ होता है।
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