अधिक मास क्या होता है ?

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| Updated on November 12, 2019 | Astrology

अधिक मास क्या होता है ?

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@panditayush4171 | Posted on November 12, 2019

वैसे देखा जाए तो साल में केवल 365 दिन ही होते हैं, परन्तु हिन्दू कैलेंडर के अनुसार साल में 365 दिन के बाद भी कुछ अतिरिक्त दिन होते हैं, जिन्हें अधिक मास, खर मास या मलमास कहते हैं । साल में अधिक दिन होने के कारण इस मास को शुभ नहीं मानते । आपको आज बताते हैं कि यह अधिक मास क्या है और क्यों है ?

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ज्योतिष के अनुसार दिनों की गिनती ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर होती है जिसके हिसाब से हर तीन साल बाद अधिक मास आता है । इसको अशुभ मानने के कारण इसको मलिन कहा जाता है । मलिन होने के कारण ही इसको मलमास नाम से भी जाना जाता है । ज्योतिष के अनुसार मलमास पूरे 32 महीने 16 दिन और 8 घड़ी के बाद होता है । वैसे तो मलमास सूर्य मास और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए होता है । यह पूरे 3 साल के बाद आता है , क्योकिं सूर्य पूरे वर्ष में 365 दिन और 6 घंटे उदय होता है और चंद्र पूरे वर्ष में 354 दिन आता है । इस तरह सूर्य और चंद्र उदय होने के बीच 11 दिन का अंतर आ जाता है । यह अंतर लगातार 3 साल आता है जिसके कारण हर साल 11 दिन मिलकर पूरे 3 साल में एक मास हो जाता है जो कि अधिक मास कहलाता है ।

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मलमास में भगवान शिव की आराधना और भगवान विष्णु का पूजन लाभकारी है, इससे सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं । मलमास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता , जैसे विवाह ,मुंडन, ग्रहप्रवेश, शादी की बात, नई चीज़ की खरीदी इत्यादि ।

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@shashikumar9252 | Posted on November 12, 2019

सौर-वर्ष का मान ३६५ दिन, १५ घड़ी, २२ पल और ५७ विपल हैं। जबकि चांद्रवर्ष ३५४ दिन, २२ घड़ी, १ पल और २३ विपल का होता है। इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष १० दिन, ५३ घटी, २१ पल (अर्थात लगभग ११ दिन) का अन्तर पड़ता है। इस अन्तर में समानता लाने के लिए चांद्रवर्ष १२ मासों के स्थान पर १३ मास का हो जाता है।

वास्तव में यह स्थिति स्वयं ही उत्त्पन्न हो जाती है, क्योंकि जिस चंद्रमास में सूर्य-संक्रांति नहीं पड़ती, उसी को "अधिक मास" की संज्ञा दे दी जाती है तथा जिस चंद्रमास में दो सूर्य संक्रांति का समावेश हो जाय, वह "क्षयमास" कहलाता है। क्षयमास केवल कार्तिक, मार्ग व पौस मासों में होता है। जिस वर्ष क्षय-मास पड़ता है, उसी वर्ष अधि-मास भी अवश्य पड़ता है परन्तु यह स्थिति १९ वर्षों या १४१ वर्षों के पश्चात् आती है। जैसे विक्रमी संवत २०२० एवं २०३९ में क्षयमासों का आगमन हुआ तथा भविष्य में संवत २०५८, २१५० में पड़ने की संभावना है।


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