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ढाई अक्षर प्रेम का पढा सो पंडित होये मे ढाई अक्षर से तात्पयर प्रेम से है। कबीर कहते है कि प्रेम मे वैसे तो ढाई अक्षर होते है लेकिन यदि कोई इसे समझ ले तो प्रेम ढाई नही पुरा माना जाता हैं। कबीर कहते है प्रेम कभी पुरा नही होता अर्थात प्रेम परमात्मा है कजैसा है कितना भी विकसित हो जाए, विकास जारी ही रहता है। प्रेम आदि अनादि हैं। इस जगत में प्रेम परमात्मा है। इसलिए प्रेम को ढाई अक्षर कहा गया है।
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