संत कबीर दास जी हिंदी भाषा में अपने लोकप्रिय दोहे से काफी प्रसिद्ध है। इन्होंने एक से बढ़कर एक विख्यात दोहे को प्रकाशित किया है। निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। इनका यह दोहा भी काफी लोकप्रिय है और प्रसिद्ध रहा है दोहे का बहुत ही गहरा अर्थ होता है।
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कबीर दास जी के इस दोहे की पहली लाइन का अर्थ यह है कि हमें अपने आलोचकों की बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए। क्योंकि आलोचक ही हमें हमारी कमजोरियों को बता सकते हैं। और फिर उसके बाद हम अपनी कमजोरियों को समझ कर उनमें सुधार कर सकते हैं। इसीलिए आलोचक हमारा सबसे बड़ा मित्र होता है। कबीर दास ने इस दोहे में में यही बताया है|
अतः कबीर दास जी का इस दोहे के माध्यम से कहने का मतलब यह है कि हमें अपने आलोचकों को अपने पास रखना चाहिए। और वह हमारी कमी को साबुन की बातें साफ कर सकते हैं। जैसी आप पानी से नहा कर निर्मल हो जाते हैं। वैसे ही अगर आप अपने आलोचकों को पास में रखेंगे। तो फिर आपको अपनी कमजोरी और कमी पता चल जाएगी और वे आपकी उन्नति करने में काफी लाभकारी साबित होंगे।
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अर्थात इस दोहे का अर्थ यह है कि हमारी कमियां निकालने वाले चाहे वह हमारे आलोचक हो। या वे हमारे मित्र हो, हमें उनको अपने पास रखना चाहिए। क्योंकि वही हमें हमारे स्वभाव में परिवर्तन करके हमें निर्मल बना सकते हैं। और फिर इससे हमारी उन्नति हो सकती है।
व्यवहार में कबीर दास जी के इस दोहे का अर्थ यह है, कि हमें अपने विरोध करने वालों की भी निंदा नहीं करनी चाहिए। हमें उनका भी हृदय से सम्मान करना चाहिए और आपने निंदा को स्वीकार करना चाहिए।