नोमोफोबिया का नाम सुनते ही इस बात का थोड़ा बहुत तो अंदाजा सभी लगा ही लेते हैं कि यह कोई रोग या बीमारी है , और कुछ लोगो इतना ही समझ ही जाते हैं कि यह कोई मानसिक बीमारी है क्योकि जहां फोबिया नाम आता है वहाँ इतना तो समझ ही आता है कि यह किसी प्रकार का डर होता है ।
जैसा कि तकनिकी ने मानव जीवन को बहुत आसान बनाया है, और मनुष्य की हर बदलती जरूरतों को ध्यान में रखा है । परन्तु क्या हमने कभी इस बात को सोचा है कि तकनिकी के इस विकास में हम लोग कितने अलसी और गैर जिम्मेदार होते जा रहे हैं । सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हम तकनीक के इतने आदि हो गए हैं कि हम उसके बिना आज के समय में सांस भी नहीं ले सकते ।
आज आपको
नोमोफोबिया क्या है इसके बारें में बताते हैं कि यह नोमोफोबिया क्या बला है । सबसे पहले आज हम इस बात पर गौर करेंगे कि मानव जीवन में सबसे जरुरी क्या है ? आज के समय में सबसे जरुरी
मोबाइल फ़ोन है और अगर मोबाइल एक मिनिट के लिए भी आँखों से ओझल हो जाए तो सब की सांस थम जाती है । यही है नोमोफोबिया अर्थात मोबाइल फ़ोन खोने का डर जो मनुष्य में हमेशा बना रहता है , नोमोफोबिया कहलाता है ।
(Courtesy : Dainik Bhaskar )
एक रिसर्च के अनुसार यह पता चला है कि नोमोफोबिया लगभग 77 प्रतिशत लोगों में होता है , जिनके लिए अपने मोबाइल के बिना थोड़ा सा भी वक़्त निकालना मुश्किल हो जाता है । इस रिसर्च में 25 से 34 साल के बीच के लोग अधिक हैं । कई लोग तो अपना फ़ोन बाथरुम तक में ले जाना जरुरी समझते हैं और कुछ लोग अपने फ़ोन में पासवर्ड लगते हैं ताकि उनका फ़ोन कोई और ओपन न कर सके।
नोमोफोबिया से मानव जीवन बहुत प्रभावित हुआ है । इंसान बिना मोबाइल के रह नहीं सकता और आज के समय में सब कुछ मोबाइल पर ही सेव हैं , कांटेक्ट नंबर से लेकर उसके बैंक अकाउंट की सारी डिटेल सब कुछ उसके फ़ोन में, अगर फ़ोन गुम हो गया तो इंसान आधा हो जाता है । लगभग इस बीमारी से सभी लोग ग्रसित हैं ।
(Courtesy : Sarita )