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चीन और रूस का अफ्रीका में बढ़ता दबदबा कई रणनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं से जुड़ा हुआ है। हाल के वर्षों में, इन दोनों देशों ने अफ्रीका में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया है। आइए विस्तार से समझते हैं कि चीन और रूस किस प्रकार अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं।
चीन ने अफ्रीका में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए आर्थिक निवेश, व्यापार, बुनियादी ढांचे के विकास और कूटनीतिक संबंधों का सहारा लिया है।
चीन ने अफ्रीका में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत कई देशों में बुनियादी ढांचे के विकास में भारी निवेश किया है। इस पहल के तहत चीन ने सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश किया है, जिससे अफ्रीकी देशों को आर्थिक लाभ हुआ है।
चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है। अफ्रीका से चीन को खनिज, तेल, प्राकृतिक संसाधन मिलते हैं, जबकि चीन अफ्रीका को तकनीकी उत्पाद, मशीनरी और उपभोक्ता वस्तुएं प्रदान करता है। इस व्यापारिक संबंध ने अफ्रीका में चीन की पकड़ को मजबूत किया है।
चीन ने अफ्रीकी देशों को बड़े पैमाने पर ऋण दिया है, जिससे वे बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं को पूरा कर सके। हालांकि, कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह ऋण-जाल कूटनीति का हिस्सा हो सकता है, जिससे अफ्रीकी देश चीन पर अधिक निर्भर हो जाएं।
चीन ने अफ्रीका में सैन्य सहयोग भी बढ़ाया है। उसने कई अफ्रीकी देशों को सैन्य उपकरण, प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान की है। इसके अलावा, चीन ने अफ्रीका में शांति मिशनों में भी भाग लिया है।
रूस ने अफ्रीका में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए सैन्य सहयोग, राजनीतिक समर्थन और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का सहारा लिया है।
रूस ने अफ्रीका में सैन्य सहयोग को बढ़ावा दिया है। उसने कई देशों को हथियार, सैन्य उपकरण और प्रशिक्षण प्रदान किया है। रूस ने सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक (CAR), माली और सूडान जैसे देशों में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाई है।
रूस ने अफ्रीका में राजनीतिक समर्थन भी बढ़ाया है। उसने कई देशों में सरकारों को समर्थन दिया है और पश्चिमी देशों के प्रभाव को कम करने की कोशिश की है। रूस ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अफ्रीकी देशों के साथ सहयोग बढ़ाया है।
रूस ने अफ्रीका में खनिज और ऊर्जा संसाधनों के दोहन में रुचि दिखाई है। उसने कई देशों में खनन और तेल परियोजनाओं में निवेश किया है, जिससे उसकी आर्थिक पकड़ मजबूत हुई है।
रूस की वैगनर ग्रुप नामक निजी सैन्य कंपनी अफ्रीका में सक्रिय है। यह समूह कई देशों में सैन्य सहायता और सुरक्षा सेवाएं प्रदान करता है। रूस ने इस समूह के माध्यम से अफ्रीका में अपनी पकड़ मजबूत की है।
चीन और रूस की अफ्रीका में बढ़ती उपस्थिति ने पश्चिमी देशों के प्रभाव को चुनौती दी है। पहले अफ्रीका में अमेरिका, यूरोप और फ्रांस का दबदबा था, लेकिन अब चीन और रूस ने अपनी रणनीति से इस प्रभाव को कम किया है।
पश्चिमी देशों ने चीन और रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए नई नीतियां और निवेश योजनाएं बनाई हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने अफ्रीका में विकास परियोजनाओं और सैन्य सहयोग को बढ़ाने की कोशिश की है।
अफ्रीकी देशों ने चीन और रूस के साथ सहयोग को मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ देशों ने इन दोनों देशों के साथ सकारात्मक संबंध बनाए हैं, जबकि कुछ देशों ने ऋण-जाल और सैन्य हस्तक्षेप को लेकर चिंता व्यक्त की है।
चीन और रूस ने अफ्रीका में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक रणनीतियों का उपयोग किया है। चीन ने बुनियादी ढांचे, व्यापार और वित्तीय सहायता के माध्यम से अपनी पकड़ मजबूत की है, जबकि रूस ने सैन्य सहयोग, राजनीतिक समर्थन और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर ध्यान केंद्रित किया है। इन दोनों देशों की बढ़ती उपस्थिति ने पश्चिमी देशों के प्रभाव को चुनौती दी है और अफ्रीका की भविष्य की राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है।
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