संस्कृत में कई ऐसे श्लोक हैं जिन्हे हम सुनते आये है लेकिन वह अधूरे है यह कोई कोई जानता है।
हमारे वेदो और पुराणो मे ज्ञान का भंडार है।
श्री कृष्ण ने गीता में कई श्लोको का उच्चारण किया जिससे वह अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए है यह कहते है ।
उन्ही श्लोक मे से एक यह श्लोक भी था -
धर्मो रक्षति रक्षित: ।
लेकिन क्या आप सभी यह जानते है कि यह श्लोक अधूरा है। पुरा श्लोक यह है -
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित: ।
। तस्मात धर्म न त्यजामि मा नो धर्मो हतोवधीत।
जिसका अर्थ है -
" जो मनुष्य धर्म का नाश कर देता है, धर्म भी उसका नाश कर देता है।
और जो सदैव धर्म की रक्षा करता है, धर्म भी उसकी रक्षा करता है।
हमे कभी भी धर्म का त्याग नही करना चाहिए।
किसी को भी अपने धर्म को नही त्यागना चाहिए। क्या आप जानते है धर्म क्या है -
धर्म का मतलब हिंदू, मुस्लिम, सिख ,ईसाई नही है या अपने धर्म के भगवान की पूजा करना नही होता।
धर्म होता है - माता - पिता का धर्म - अपनी संतान को पाल पोस के उसे अच्छी शिक्षा देना, गुणों से भरना एक अच्छा इंसान बनाना यह उनका कर्तव्य है और यही उनका धर्म है।
अपनी जिम्मेदारी से हटना मतलब अपने धर्म का त्याग करना होता है।
उसी प्रकार भाई का धर्म, बहन का धर्म, बेटे का धर्म। सभी को अपने धर्म का पालन करना चाहिए और उस धर्म की रक्षा करना चाहिए।
धर्म पर चलने वाला व्यक्ति कभी गलत मार्ग पर नही चल सकता। वह सदैव धर्म की डोरियो मे बंधा रहता है। इसी वजह से धर्म भी उसकी रक्षा करता है और उसे कोई भी गलत कार्य करने से मना करता है और उसे सही मार्ग पर बनाये रखता है।
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