इस दुनिया में डर जैसी कोई चीज होती ही नही है जो चीज़ इंसान दिमाग़ में बैठा लेता है वही उसका दिमाग मान लेता है।क्योंकि इंसान डर को अपने दिमाग में बैठा लेता और तब तक बैठाए रहता है जब तक उसका डर का भ्रम दिमाग से खत्म नही हो जाता है। कोई कोई तो रात के अंधेरो से डर जाता है तो किसी दिमाग़ मे यह ख्याल आता है कि भूत होते है उनके दिमाग़ मे भूत के होने का डर बैठ जाता है।
किसी को अकेले पन से डर लगता है तो किसी को रात से डर लगता है और डर का सबसे ज्यादा असर उसके दिमाग पर पड़ता है क्योंकि जितना इंसान सोचेगा उसे डर भी उतना ही लगेगा, कभी -कभी इंसान के दिमाग़ इतना डर बैठ जाता है कि इंसान अपने आप सोचने लगता है कि उसे कोई आवाज़ दे रहा है या फिर किसी से ने उसे आवाज़ दी है या फिर कभी कभी रातो में लगता है कि उसके सामने कोई खड़ा है लेकिन ऐसा कुछ नही होता है जैसे -जैसे इंसान इन सब बातों को अपने के दिमाग़ से निकाल देता है, तो उसका डर खत्म हो जाता है।
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