मीना कुमारी की शायरियों में ज़िंदादिली और गम का एहसास एक साथ क्यों होता था?
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बॉलीवुड में ट्रैजिडी क्वीन के नाम से जाने जाने वाली मीना कुमारी ना केवल एक नाम था बल्कि खूबसूरती और सकारात्मक व्यक्तित्व की एक गज़ब मिसाल भी मानी जाती थी, यही वजह है कि मीना कुमारी की शायरियों में लोगों को उनकी ज़िंदादिली और गम का एहसास एक साथ होता था और वह लाखों दिलों पर राज करती थी | मीना कुमारी के शब्दों में आप ज़िंदगी जीने के एहसास से ले कर जीवन के हर रंग के पहलुओं को महसूस कर सकते हो |
(courtesy-NDTV Khabar)
आज आपको मीना कुमारी के जीवन से जुड़े कुछ तथ्य और उनकी रोचक शायरियों के बारें में बताते है -
(courtesy-shabd)
- वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में शुमार होने के साथ ही मीना उम्दा शायर और गायिका भी थी |
- मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1932 को बंबई में हुआ था, और मीना कुमारी का असली नाम महजबीन बेगम था |
- भारतीय सिनेमा की ट्रैजिडी क्वीन (Tragedy Queen) कही जाने वाली मीना कुमारी आज भी लाखों दिलों पर राज करती हैं और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में शुमार होने के साथ ही मीना उम्दा शायर भी थी |
(courtesy-amarujala)
- मीना कुमारी के फिल्मी करियर की शुरुआत साल 1939 में फिल्म "लैदरफेस" से हुई जिसके निर्देशक विजय भट्ट थे |
- विजय भट्ट की फिल्म बच्चों का खेल में 13 वर्ष की महजबीन का नाम मीना कुमारी दिया जिसके बाद से ही महजबीन मीना कुमारी के नाम से हिंदी सिनेमा में प्रख्यात हुई |
- मीना कुमारी एक गरीब परिवार से थी और कहा जाता है कि उनके जन्म के बाद उनके परिवार के पास डॉक्टर को देने के लिए पैसे तक नहीं थे, जिसके कारण उनके पिता अली बख्श उनको अनाथालय की सीढ़ियों पर छोड़ कर आ गायें थे |
- मीना कुमारी ने कई गीतों को अपनी आवाज़ दी और उन्होनें गायिकी की साड़ी तालीम अपनी माँ से ली |
- मीना कुमारी ने 'बहन' फिल्म में अपना पहला गीत "ले चल मुझे अपनी नगरिया गोकुल वाले सांवरिया" गाया था जिसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में गीत गाए. साथ ही उन्होंने उन्होंने "ईद का चांद" फिल्म में संगीतकार का भी काम किया था जो उनके जीवन में एक बड़ी पदवी रही |
- अपने 30 साल के पूरे फिल्मी सफर में मीना कुमारी ने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और साल 1954 में फिल्म ‘बैजू बावरा’ ने मीना कुमारी को बेस्ट एक्ट्रेस का फ़िल्मफेयर अवॉर्ड भी दिलवाया |