किसी भी देश के विकास में उस देश का अपना एक कल्चर, संस्कृति, एक सोच, एक विचार केंद्र में निहित होता है. विकास की इस राह पर उस देश के नागरिको महिला-पुरुषो का अहम् योगदान होता है. जो देश इस बात के महत्व समझता है वह देश सतत आगे बढ़ाता है और तरक्की करता है.
अब बात अगर हम अपने देश की करे तो यहाँ स्थिति एकदम उलटी है. कन्या भ्रूण हत्या आज एक ऐसी अमानवीय समस्या का रुप धारण कर चुकी है जो हमारे देश के विकास को दीमक की तरह खाये जा रही है और जो कई और गंभीर समस्याओं की जड़ भी बन गया है. परिणामस्वरुप महिलाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन घट रही है.
हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज है जिसमे महिलाओं द्वितीय स्थान प्राप्त है. आज भी उन्हें पुरुषो के सामान बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता है न ही देश के विकास में उनकी भूमिका को अहम् स्थान मिल पाया है.
अब बात अगर हम आंकड़ों की करे तो शासकीय आकड़े बताते है की हाल ही में प्रकाशित केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2001 से 2005 के अंतराल में करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण हत्याएं हुई हैं. इस लिहाज से देखें तो इन चार सालों में रोजाना 1800 से 1900 कन्याओं को जन्म लेने से पहले ही दफ्न कर दिया गया. सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं.
यूनिसेफ के अनुसार 10 प्रतिशत महिलाएं विश्व की जनसंख्या से लुप्त हो चुकी हैं, जो गहन चिंता का विषय है. स्त्रियों के इस विलोपन के पीछे कन्या भ्रूण हत्या ही मुख्य कारण है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2013 में भारत में कन्या भ्रूण हत्या के कुल 217 मामले दर्ज किए गए, जिनमें सबसे अधिक 69 मध्य प्रदेश से, 34 राजस्थान से और 21 हरियाणा से संबंधित थे.
हमारे समाज में कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है और हमें इसके कारणों को समझने के लिए इसकी जड़ तक जाना होगा जो निम्नानुसार देखने को मिलती है..
• जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है. हमारे समाज के लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात चिंता का विषय बन गया है.
• संकीर्ण मानसिकता और समाज में कायम अंधविश्वास के कारण लोग बेटा और बेटी में भेद करते हैं. प्रचलित रीति-रिवाजों और सामाजिक व्यवस्था के कारण भी बेटा और बेटी के प्रति लोगों की सोच विकृत हुई है.
• समाज में ज्यादातर मां-बाप सोचते हैं कि बेटा तो जीवन भर उनके साथ रहेगा और बुढ़ापे में उनकी लाठी बनेगा. समाज में वंश परंपरा का पोषक लड़कों को ही माना जाता है.
• प्राचीनकाल में भारत में महिलाओं को भी पुरुषों के समान शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध थे,किंतु विदेशी आक्रमण एवं अन्य कारणों से महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने से वंचित किया जाने लगा है.
• समाज में पर्दा प्रथा और सती प्रथा जैसी कुप्रथाएं व्याप्त हो गई.
• महिलाओं को शिक्षा के अवसर उपलब्ध नहीं होने का कुप्रभाव समाज पर भी पड़ा. लोग महिलाओं को अपने सम्मान का प्रतीक समझने लगे. धार्मिक एवं सामाजिक रूप से पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाने लगा एवं महिलाओं को घर की चारदीवारी तक ही सीमित कर दिया गया.
• युवाअवस्था में प्रेम के फलस्वरुप गर्भधारण को हमारा समाज पाप मानता है. जिस परिवार की किशोरी ऐसा करती है, समाज में उसकी निंदा जाती है.
• समाज में लोग अपनी प्रतिष्ठा को लेकर बड़े रूढ़िवादी है अपनी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचने की किसी आशंका से बचने के लिए वे सिर्फ बालक शिशु के जन्म को ही महत्व देते है.
• कोई भी महिला अपनी गर्भस्थ संतान को मारना नहीं चाहती, भले ही वह कन्या शिशु ही क्यों ना हो, लेकिन परिजन विभिन्न कारणों से उसे ऐसा करने के लिए बाध्य करते हैं. भारतीय नारियां तो अपनी कन्याओं को जीवन भर समस्याओं का दृढ़तापूर्वक सामना करने की सीख देती है.
• कन्या भूर्ण हत्या का एक बड़ा कारण दहेज प्रथा भी है. लोग लड़कियों को पराया धन समझते हैं, उनकी शादी के लिए दहेज की व्यवस्था करनी पड़ती है. दहेज जमा करने के लिए कई परिवारों को कर्ज भी लेना पड़ता है, इसलिए भविष्य में इस प्रकार की समस्याओं से बचने के लिए लोग गर्भावस्था में ही लिंग परीक्षण करवाकर कन्या भूर्ण होने की स्थिति में उसकी हत्या करवा देते हैं.
• हमारे समाज में महिलाओं से अधिक पुरुषों को महत्व दिया जाता है, परिवार का पुरुष सदस्य ही परिवार के भरण -पोषण के लिए धनोपार्जन करता था. अभी भी कामकाजी महिलाओं की संख्या बहुत कम है. उन्हें सिर्फ घर के कामकाज तक सिमित रखा जाता है.
• संविधान द्वारा महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने के बाद भी उनके प्रति सामाजिक भेदभाव में कमी नहीं हुई है, इसलिए परिवार के लोग भविष्य में परिवार की देखभाल करने वाले के रूप में बालक शिशु की कामना करते हैं.
• भारतीय समाज में यह अवधारणा रही है कि वंश पुरुष से ही चलता है, महिलाओं से नहीं इसलिए सभी लोग अपने-अपने वंश परंपरा को कायम रखने के लिए पुत्र की चाह रखते हैं. उसे पुत्री की तुलना में अधिक लाड प्यार देते हैं किंतु वह भूल जाते हैं कि उनकी पुत्री भी आगे चलकर मदर टेरेसा, पीटी उषा, लता मंगेशकर, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स आदि बनकर उनके कुल और देश का गौरव बन सकती हैं.
इस कुरीति को रोकने के उपाय
• कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक अभिशाप है और इसे रोकने के लिए लोगों को जागरुक करना होगा. महिलाओं को आत्मनिर्भर बना कर ही इस कृत्य को रोका जा सकता है.
• कानून तब तक कारगर नहीं होता, जब तक कि उसे जनता का सहयोग ना मिले. जनता के सहयोग से ही किसी अपराध को रोका जा सकता है.
• कन्या भ्रूण हत्या एक ऐसा अपराध है इसमें परिवार हैं समाज के लोगों की भागीदारी होती है, इसलिए जागरुक नागरिक की ही इस कुकृत्य को समाप्त करने में विशेष भूमिका निभा सकते हैं.
• सरकारी एवं गैर सरकारी संगठन, मीडिया को भी समाज में आगे आना होगा से इस कलंक मिटाने के लिए हम सब को मिलकर प्रयास करने होंगे.
• किसी भी देश की प्रगति तब तक संभव नहीं है, जब तक वहां की महिलाओं को प्रगति के पर्याप्त अवसर ना मिलें. जिस देश में महिलाओं का अभाव हो, उसके विकास की कल्पना भला कैसे की जा सकती है.
• हमें महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए उन्हें साक्षर करना होता और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति भी जागरूक बनाना होगा.
• महिला परिवार की धुरी होती है| समाज के विकास के लिए योग्य माताओं, बहनों एवं पत्नियों का होना अति आवश्यक है| यदि महिलाओं की संख्या में कमी होती रही तो सामाजिक संतुलन बिगड़ जाएगा हैं समाज में बलात्कार, व्यभिचार इतिहास की घटनाओं में वृद्धि होने लगेगी.