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हमारी पसंदीदा वीर रस की कविता है :-
आज हिमालय की चोटी से -
आज फिर हमने हिमालय की चोटी से ललकारा है,
दूर हट जाओ दुनिया वालो ऐ हिंदुस्तान हमारा है।
जहाँ पर हमारा ताज महल है,तथा क़ुतुब मीनार है,
जहाँ पर हमारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वार है,
उस धरती पर तुम्हारा कदम बढ़ाना तुम्हारा अत्याचार है।
जाग उठो तुम सब आज तुम्हारी जंग है हिंदुस्तानियों,
हिंदुस्तानियों किसी समने जुकाना मत चाहे वह जापानी हो या चाहे जर्मन।
आज सभी हिंदुस्तानियों के लिए यही कौमी नारा,
दूर हट जाओ दुनिया वालो ऐ हिदुस्तान हमारा है।
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वैसे तो वीर रस की सभी कविताएं सुनने में अच्छे लगते हैं लेकिन मुझे मैथिलीशरण गुप्त जी के द्वारा रचित कविता अर्जुन की प्रतिज्ञा सबसे अधिक पसंद है।
उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा,
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा,
मुख - बाल - रवि - सम लाल होकर ज्वाला सा बोधित हुआ,
प्रलयार्थ उनके मिस वहां क्या काल ही क्रोधित हुआ?
युग - नेत्र के उनके जो अभी थे पूर्ण जल की धार- से,
अब रोस के मारे हुए, वे दहकते अंगार से,
निश्चय अरुणिमा - मित्त अनल की जल उठी वह ज्वाल सी,
तब तो द्रगों का जल गया सोकाश्रु जल तत्काल ही।
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