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रविश कुमार एक ऐसे पत्रकार है जिन्हे सर्कार का विरोध करने में भट मज़ा आता है ये वो बंदा है सर्कार कोई भी काम करती है इसे समस्या होती है अब इन्हे समस्या है की टी.वि पर रामायण क्यों दिखाई जा रही है महाभारत क्यों दिखाई जा रही है |
कुछ दिन पहले इनका एक वीडियो विरुल हुआ था जिसमे वो पूछ रहे थे भोजपुरी में "कवनि जनता की कहला प रामायण दिखावल जाट बा "इनको प्रॉब्लम ये है की मुस्लिमो को दुःख हो रहा है रामायण से इस लिए इनको दुःख हो रहा है क्यों नहीं टी.वि पर अलिफलैला नहीं दिखाई जा रही है
ये लाल सलाम वाले पत्रकार है इनको भारत की संस्कृति से कोई मतलब नहीं है इनको बीएस विरोध करना है इसी कारन ये बहुत गली भी सुनते है ये एक नंबर का बेवकूफ पत्रकार है इनको ये समस्या है की अब इनके शो को कोई देखता नहीं है इस लिए ये नए नए हथकंडे अपनाते है इनके सवाल का उत्तर भी अब जनता ही देती है इनके वीडियो का भी बहुत सारा उत्तर मिला है बहुत सारे लोगो ने दिया है
इनका असली समस्या भाजपा से है न की रामायण से अगर यही काम कोई और सर्कार करती तो इनको बहुत अच्छा लगता इनको ये समझना चाहिए की अगर जनता रामायण नहीं देखना चाहती तो आज दूरदशन का टी आर पि इतना न होता तो रविश कुमार इतना बौखलाइये मत अब जनता जग चुकी है और आपको समझ भी चुकी है की आप क्या है
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रवीश कुमार पूछते है की किसान के बैंगन कोई खरीद नहीं रहा है, गरीब लोग परेशान है, बैंक के लोन से सब परेशान है, मोदी सरकार ऐसा कैसे समझती है कि टीवी पर सीरियल दिखाएंगे तो लोग देख लेंगे (वैसे लोग देख तो रहे है)?
रवीश कुमार जो बता रहे है पूरी तरह गलत तो नहीं है, लेकिन रामायण का ही मुद्दा क्यों उठा रहे है बार बार सिर्फ वो ही जाने। रामायण को बाजू में रख कर भी तो ये कहा जा सकता था कि मास्क वगैरा कम है (मोदी ने चीन से मंगवाएं है)।
अब रामायण दिखा दी तो क्या फर्क पड़ने लगा? इनको पढ़ता है। क्योंकि ये मोदी विरोधी है। कहते है बिहार के १२ करोड़ की आबादी में टेस्ट नहीं हुआ और कहते है कि जर्मनी में लाखो लोगो का रोज हो रहा है। अब इन्हें कौन समझते बैठे कि जर्मनी कि आबादी और भारत की आबादी की तुलना कैसे की जा सकती है? जर्मन लोग दुनिया घूमते है, हम घूमते है क्या? साला सारी जनता का टेस्टिंग करने उतर गए तो कितना खर्चा पड़ेगा।
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