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कर्नाटक में पिछले कुछ दिनों में तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद अब वहां कांग्रेस और जनता दल सेक्यूलर के गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। इसके मुखिया होंगे एच डी कुमार स्वामी। पहले जहां कांग्रेस बिना शर्त समर्थन देने की बात कर रही थी वहीं अब डिप्टी सीएम से लेकर मंत्रिमंडल तक कांग्रेस का हस्तक्षेप नजर आने लगा है। ऐसे में सभी के मन मे यह सवाल है कि क्या यह गठबंधन सरकार पूर्णकालिक है और पांच साल चलेगी? यह सवाल खुद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने जा रहे एच डी कुमारस्वामी के मन भी है तभी शायद उन्होंने अपने एक बयान में कहा कि यह सरकार चलानी बड़ी चुनौती होगी।
अब आइये आपको बताएं कि क्यों है सरकार पर संशय? ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस की सीटें ज्यादा है और वह हमेशा जदएस पर भारी रहेगी। विपक्ष के रूप में ताकतवर बीजेपी होगी जो सरकार को हर मोर्चे पर घेरेगी। इसके अलावा विधायकों की टूट से बचना बड़ी चुनौती होगी। खास कर लिंगायत विधायकों को साथ बनाये रखना सबसे बड़ा काम होगा। यह सारे तथ्य ऐसे हैं जो आने वाले समय मे सरकार की अग्नि परीक्षा लेंगे।
अब बात करते हैं कर्नाटक के गठबंधन से देश मे विपक्षी एकता की लहर की, यह हवा चली और निकल भी गई। बेशक इस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में देश मे बीजेपी के विरोधी दलों और खास कर क्षेत्रीय दलों के नेताओं का जुटान होगा और सब को न्योता भी दिया गया है लेकिन शपथ से पहले ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर का न आना विपक्षी एकता की बड़ी विफलता मानी जा सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि केसीआर और ममता बनर्जी ने ही इस बार क्षेत्रीय दलों को साथ लाने का बीड़ा उठाया था इसके बावजूद खुद वह शामिल नही होंगे। हालांकि विपक्षी एकता की यह दम्भ पहले से कहीं मजबूत जरूर नजर आ रही है। यही वजह है कि हमेशा से राजनीति में उत्तर भारत के वर्चस्व के बावजूद इस बार दक्षिण भारत इसकी राजनीति का केंद्र बना है। अब देखना है कि यह मिलन किस हद तक सफल होता है।
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