लोग किसी भी चीज़ को बहुत जल्दी पाना चाहते है उनमे धैर्य की कमी है जरा सी रुकावट परेशानी आने पर वो घबरा जाते है.
लोग इस मामले में भी स्पष्ट नहीं है की वह सफलता का अर्थ अपने जीवन में क्या समझते है अक्सर लोग सफलता को पैसे पोजीशन रुतबा समाज में उनकी पहचान आदि बातो सफलता को के रूप में देखते है.
अधिकतर लोग दुसरो को देखकर वैसा बनना चाहते है पर आप क्या हो ? क्यों हो ? किस लिए हो ? इस पर कभी काम नहीं करते. लोग बाहर जो हो रहा है उसे देखकर उसकी तरफ भागे जा रहे है पर यदि उनमे से किसी को रोकर जरा ये पूछे की "तुम क्यों" भाग रहे हो तो शायद इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर देना उसे मुश्किल होगा
सफलता बाहर की वस्तु नहीं है इसकी शुरुआत शुरुआत अंदर से होती है. "जंग के मैदान में हारने, गिरने वाले के पास एक मौका और होता है दोबारा उठ खड़े होने का, और फिर से लड़ने का और जितने का..पर जो मन से हर गया हो वो कभी जीत नहीं सकता."