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भारत के हिंदुओं को संगठित होने की ज़रूरत नहीं है बल्कि भारत के नागरिकों को संगठित होने की बहुत ज़रूरत है।
नागरिकों को उनके धर्म के आधार पर संगठित करने का विचार भारत को सबसे ज्यादा खंडित कर रहा है।
फिर भी यदि हम चाहते हैं कि सिर्फ़ हिन्दू ही संगठित हो तो हमें ख़ुद से कुछ सवाल पूछने पड़ेंगे—
1.भारत के तक़रीबन 7 % लोग हर साल अपने इलाज पर खर्च की वज़ह से गरीबी की रेखा से नीचे चले जाते हैं। निश्चित तौर पर इनमें 80 %से ज़्यादा हिन्दू हैं।
2.आय के हिसाब से भारत में जो परिवार सबसे नीचे 10 % में आते हैं उनके बच्चों को देश की औसत आय तक पहुंचने में 7 पीढ़ी लगती है। दरअसल इनमें 80 % से ज़्यादा हिन्दू हैं। क्या हम हिन्दू संगठित होकर इनके लिए कुछ करेंगे? या नहीं।
3.जब दलितों के साथ कोई अन्याय करता है तो तब क्या वो हिन्दू नहीं होता है ?
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