वर्तमान समय में ऐसे बहुत कम व्यक्ति होते हैं जो दूसरों के लिए जीते है | सवाल बहुत सरल है और जवाब बहुत ही उलझनों से भरा हुआ है | मै आपके सवाल का जवाब कुछ बिन्दुओ में दूंगी | सर्वप्रथम, इंसान अधिकतर खुद के लिए जीता है (यह मेरा मानना है ), यदि वह आपकी मदद करता है तो कहीं न कहीं उसका खुदका स्वार्थ उसमे अवश्य होता है | यह जरुरी नहीं की स्वार्थ से अभिप्राय हमेशा किन्ही चीज़ो से जुड़ा हो, स्वार्थ अपनी ख़ुशी हो सकता है, अंतर्मन की शांति हो सकता है या कुछ और | फिर भी यदि सभी स्वार्थों से हटकर कोई व्यक्ति किसी कि लिए जीता है ( जैसा की आप कह रहे हैं ) तो आइये जाने की वह ऐसा क्यों करता है |
व्यक्ति हमेशा दिल से सोचता है या दिमाग से, यह तो आपने अक्सर सुना होगा परन्तु सत्य यह है की व्यक्ति हमेशा अपने दिमाग से सोचता है | जब वह किसी और व्यक्ति के बारे में खुद से ज्यादा सोचने लगे तो यह सब उसके दिमाग से ही होता है | साधारण शब्दों में मनुष्य अक्सर दुसरे व्यक्ति के लिए समर्पित हो जाते हैं और उनकी ख़ुशी और दुःख को अपनी ख़ुशी और दुःख से आगे रखते हैं | जिसपर अक्सर हम कहते हैं की वह दूसरों के लिए जी रहा है |
दूसरा उदाहरण स्वयंम आपकी माँ हैं | मेरा मानना है की केवल एक माँ ही है जो अपने बच्चे के लिए पूर्ण रूप से समप्रित होती है | हम यह कह सकते है की वह अपने बच्चे के लिए जीती है, जिसका कारण है की उसे सबसे ज़्यादा प्रेम अपनी संतान से होता है जिसके लिए वह कुछ भी कर सकती है | संतान अपनी माँ से उत्पन्न होता है इसलिए माँ का संतान को प्रेम करना या उसके लिए जीना, अक्सर देखा जाता है |
तीसरी श्रेणी उन लोगो की है जिनका यह मानना है की यदि वह किसी से प्रेम करने लगे हैं तो वह उनके लिए ही जीते हैं या जीने लगे हैं | यह श्रेणी खुदको यह समझाने में लग जाती है की उनके द्वारा किए गए कार्य, उनका समर्पण या त्याग है | अक्सर प्रेमियों को लगता है की वह अपने साथी के लिए जी रहे हैं जबकि मै इस बात से सहमति नहीं रखती | व्यक्ति अपने लिए जीता है और यदि वह किसी और की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी ढूंढ़ने लगे तो उसे प्रेम की संज्ञा ही दी जायगी, किसी और के लिए जीने की नहीं |